Prof Rajeev Kunawar साम्राज्यवाद का असली चेहरा
साम्राज्यवाद का असली चेहरा उसके संकट के वक़्त सामने आता है। यहीं से साम्राज्यवाद और राष्ट्रवाद का अंतर समझ आ सकता है, बशर्ते समझना चाहें! देश क्या है ? उसके नागरिक, उसकी जमीन, उसकी संप्रभुता। संप्रभुता का अर्थ है ऐसी सरकार जो अपनी जनता के जरूरत के हिसाब से बिना किसी बाहरी दबाव के फैसला लेने की योग्यता, क्षमता, अधिकार। यहीं से राष्ट्र का निर्माण होता है। इसमें से एक भी नहीं है तो राष्ट्र नहीं हो सकता। ऐसे देश और राष्ट्र की भक्ति जब जनता करती है तो उसे ही राष्ट्र भक्ति कहते हैं। आज कोरोना का संकट वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है। ऐसे में जब हर राष्ट्र की सरकार अपनी अपनी जनता के प्रति प्रतिबद्ध है और उसकी प्राथमिकता अपने राष्ट्र की जनता है, तब राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद के अंतर इस उदाहरण से समझ सकते हैं। मलेरिया की खास दवा जो भारत बनाता है कोरोना के संक्रमण में बहुत जरूरी है। इसकी ब्लैक मार्केटिंग हो रही है पहले से ही। तभी राष्ट्रवादी नजरिए से इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई। यह हुई देशभक्ति। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा भारत को धमकाकर उस दवाई की पाबंदी को खत्म करवाकर खुद के नागरिकों के लिए हासिल करना क्या है ? उनके नागरिकों के लिए राष्ट्रभक्ति। लेकिन यह ऐसी राष्ट्रभक्ति है दूसरे की संप्रभुता को छीनकर अपने लिए हासिल करना है। यह ऐसा स्वार्थ है जिसमें मानव-मूल्य की हत्या निहित है। उसके लिए मानव मात्र उसके देश के नागरिक हैं। बाकी सब कीड़े मकोड़े से ज्यादा कुछ नहीं। उनपर बमबारी की जा सकती है। यही धमकी की भाषा का आधार है। लेकिन भारत के नागरिकों की सुरक्षा की कीमत पर मोदी सरकार को अपमान का घूँट पीकर अमेरिका को उस दवाई का निर्यात करना क्या कहलायेगा ? भारत के नागरिकों के नजरिए से यह अपनी ताकत का धौंस दिखाकर जबरन वसूली का तरीका ही साम्राज्यवाद कहलाता है। लेकिन भारत की सरकार द्वारा अपमानित होकर हथियार डाल देने का भाव क्या देशभक्ति है या यह देशद्रोह है ? यह राष्ट्रवाद तो बिल्कुल भी नहीं है। मोदी सरकार से क्या भारत का मीडिया यह सवाल पूछ सकता है ? सोचिएगा।

चलते चलते
राजीव कुंवर ने एक गणित भी पेश किया है। कृपया पढिये हाल के देश के नाम सम्बोधन के बाद ये सिद्धांत विकसित हुआ है।
अगला अद्भुत टास्क मिल गया है भक्तों(भाजपा सदस्य)को कि वे 40 लोगों से 100 रुपए की वसूली करें। कुल भक्तों की संख्या उनके अनुसार 18 करोड़ है।
तो 18 करोड़×40=7,200,000,000
इतनी तो जनसंख्या भी नहीं है।
मां बहनों के गहने जेबर उतरेंगे यह अलग से।
पर साहेब की इतनी हिम्मत है कि एक बार अम्बानी-अदानियों से उनका बकाया ही माँग लें!
From the Facebook Page of Rajeev Kunwar. Views are personal. Indian Democracy does not claim the ideas and consider it as sole property-idea of Rajeev Kunwar.